स्टेंट हुआ सस्ता तो यहां से पैसा वसूलने लगे अस्पताल
सेहतराग टीम
पिछले साल इसी महीने केंद्र सरकार के तहत आने वाली नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने कोरोनरी हार्ट डिजीज के इलाज एंजियोप्लास्टी में मुख्य भूमिका निभाने वाले स्टेंट की कीमत निर्धारित कर दी थी और इन स्टेंट की कीमत पहले के मुकाबले आधे से भी कम हो गई थी। तब सरकार ने जोर-शोर से दावा किया था कि इसके बाद हृदय रोग के मरीजों के इलाज का खर्च बहुत कम हो जाएगा मगर लगता है देश के निजी अस्पतालों ने सरकार ने हर कदम की काट पहले से ही सोच रखी थी क्योंकि खुद एनपीपीए ने एक से अधिक बार यह माना है कि निजी अस्पतालों में इलाज का खर्च कम नहीं हुआ है।
कहां हो रहा खेल
अब पता चल रहा है कि निजी अस्पतालों ने इलाज के बिल में स्टेंट की कीमत तो कम कर दी मगर एंजियोप्लास्टी में काम आने वाले कुछ खास उपकरणों के मद में अधिकतम पैसा वसूलना शुरू कर दिया है जिसके कारण स्टेंट की कीमत कम होने से मरीजों को जो फायदा होना चाहिए था वह नहीं हो रहा है। अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी एक रिपोर्ट में यह दावा किया है।
अखबार के अनुसार इस मामले में भी ज्यादा पैसा वसूलने का अस्पतालों का तरीका पहले जैसा ही है। उपकरण अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) की एक तिहाई कीमत पर खरीदो और मरीजों से एमआरपी वसूल करो।
कौन से कंज्यूमेबल्स होते हैं इस्तेमाल
दरअसल एंजियोप्लास्टी में तीन मुख्य कंज्यूमेबल्स का इस्तेमाल होता है। गाइडिंग कैथेटर, बलून कैथेटर और गाइडिंग वायर्स। अस्पतालों को एक गाइडिंग कैथेटर साढ़े तीन से सात हजार रुपये, बलून कैथेटर छह से 12 हजार रुपये और गाइडिंग वायर्स दो हजार से पांच हजार रुपये के बीच मिलता है जबकि इनका अधिकतम खुदरा मूल्य क्रमश: 6000 से 10500 रुपये, 20 हजार से 28 हजार रुपये और 5000 से 12 हजार रुपये है। यानी अस्पतालों को को जो चीजें कुल 15 हजार के आसपास मिल जाती हैं उनके लिए मरीजों से 40 हजार रुपये तक वसूल कर लिए जाते हैं।
दूसरी बार भी कर लेते हैं इस्तेमाल
खास बात यह है कि ये तीनों कंज्यूमेबल्स यूं तो एक ही बार इस्तेमाल किया जाना चाहिए मगर कई अस्पताल इसे स्टरलाइज करके फिर से इस्तेमाल करते हैं और मरीज से इनका बिल नए के रूप में वसूल करते हैं। ऐसे मामलों में बिल एमआरपी से कम रखा जाता है ताकि मरीज को कहा जा सके कि हमने आपको सस्ता इलाज मुहैया कराया जबकि हकीकत में अस्पताल इन चीजों का पैसा किसी और मरीज से पहले ही वसूल कर चुका होता है। जाहिर है कि ऐसे मामलों में अस्पताल का मुनाफा डबल होता है। पिछले साल मुंबई और जयपुर में अधिकारियों ने कई अस्पतालों में इस खेल का पर्दाफाश किया था।
सरकार ने जारी की थी चेतावनी
अस्पतालों में ये गोरखधंधा किस कदर फैला है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने केंद्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) के मरीजों पर इस तरह के री यूज वाले डिपोजेबल्स के इस्तेमाल के खिलाफ अस्पतालों को चेतावनी जारी की थी। इसके बावजूद ये गोरखधंधा बदस्तूर जारी है। दरअसल अस्पताल सीजीएचएस के मरीजों की बड़ी संख्या को देखते हुए उनका इलाज कम पैसे में करने हामी भरकर अपने अस्पताल को सीजीएचएस पैनल में तो शामिल कर लेते हैं मगर बाद में इसी तरह से मुनाफा कमाने का प्रयास करते हैं।
मुंबई के एक अस्पताल समूह के सीईओ से अखबार को बताया कि उनका समूह थोक में इस तरह के कंज्यूमेबल्स की खरीद करता है इसलिए उन्हें ये बेहद सस्ता पड़ता है। उनका दावा था कि वे मरीजों को एमआरपी पर नहीं बेचते बल्कि खरीद कीमत से थोड़े ज्यादा पैसे पर बेचते हैं। हालांकि उन्होंने भी ये माना कि कई अस्पताल इस मामले में गलत तरीके अपना रहे हैं।
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